हमारे देश में भयावह हालात हैं ... शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने किसी अपने को नहीं खोया होगा..!! .. सरकारी बदइंतजामी , शासन द्वारा आपदा की अनदेखी का खामियाजा भुगत इलाज - आॅक्सीजन के अभाव में मरने को मजबूर हैं लोग .. लाखों मौतें हो चुकी हैं फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा सत्तासीनों को, जैसी व्यवस्था की है हमारी सरकारों ( केंद्र व् राज्य सरकारों) ने उसे देखते हुए सिर्फ यही कहा जा सकता है कि 'लाखों और मरेंगे' ... सरकारें अभी समीक्षा व् तैयारी की मोड में ही हैं, महाविपदा की इस घड़ी में भी सियासी हथकड़ों से बाज नहीं आ रहे हमारे प्रधानमंत्री , धरातल पर कुछ बेहतर होता दिखता नहीं सिवाय कोरी बातों के ... मौतों - संक्रमितों के आंकड़े छुपाये जा रहे हैं, मीडिया - सोशल मीडिया पर सचबयानी से परहेज करने का सरकारी दबाब है .. आपदा अवसर में बदल आम जनता के लिए निरंतर नयी परेशानियां खड़ी कर रहा है.. सर्वत्र हाहाकार है, मौत का तांडव है फिर भी न जाने किन कारणों से सरकार को संपूर्ण लाॅकडाउन से परहेज है ? ..
उम्मीद की किसी भी किरण की आस नहीं , सर्वत्र लाश ही लाश है... त्राहिमाम.. त्राहिमाम का उद्घोष है, बावजूद इसके सत्ता को सिर्फ अपनी ठसक की ही परवाह है..
शायद ही कोई बचे ! क्योंकि ईश्वर ने भी ले लिया अवकाश है..
(दो टूक@आलोक)
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